बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम ने जहां राजनीतिक समीकरण बदले, वहीं लालू प्रसाद यादव के परिवार में भी गहरा विवाद उभरकर सामने आया है।
राजद सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई, और इसके बाद से परिवार में शांति की जगह आरोप, नाराजगी और टूटन ने ले ली है।
तेजस्वी यादव ने परिणामों से पहले घोषणा की थी—
“लिख लो, 18 को मैं शपथ लूंगा”,
लेकिन नतीजों के बाद यह तारीख सत्ता परिवर्तन की नहीं, बल्कि परिवारिक कलह का प्रतीक बन गई।
हालांकि मुख्यमंत्री का पद भले न मिला हो, लेकिन घर के अंदर जो परिस्थिति बनी, उसने तेजस्वी को परिवार का ‘अनौपचारिक मुखिया’ बना दिया।
लालू परिवार क्यों टूटा? बड़े कारण खुलकर सामने आए
1. राजनीतिक वर्चस्व की सबसे बड़ी लड़ाई
लालू यादव के रिटायरमेंट के बाद परिवार में नेतृत्व को लेकर तनाव पहले से मौजूद था।
तेजस्वी पार्टी और परिवार दोनों जगह सबसे ताकतवर चेहरा बनकर उभरे हैं।
- तेज प्रताप को एक समय परिवार और पार्टी से दूर कर दिया गया
- बहनों में टिकट और राजनीतिक महत्व को लेकर असहमति बढ़ी
- मीसा भारती और रोहिणी आचार्य के बीच भी दूरी दिखाई दी
ये सभी मुद्दे मिलकर परिवार को विभाजित करने वाले बड़े कारक साबित हुए।
2. चुनावी हार ने फूटा हुआ लावा बाहर ला दिया
चुनाव के दौरान एकजुटता दिखाने की कोशिश की गई, लेकिन नतीजों के बाद आंतरिक नाराजगी खुलकर सामने आ गई।
- रोहिणी आचार्य का घर छोड़ना
- बहनों का मीसा भारती के पास पहुंचना
- तेजस्वी का परिवार के भीतर सबसे प्रभावशाली सदस्य बन जाना
ये सभी संकेत देते हैं कि अंदरूनी विवाद लंबे समय से उबल रहा था।
3. तेजस्वी यादव की तेजी से बढ़ती राजनीतिक ताकत
तेजस्वी अब पार्टी के वास्तविक कमांडर हैं।
सभी बड़े फैसलों में उनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो चुकी है।
यही बढ़ता प्रभाव बाकी सदस्यों में असंतोष का कारण बना।
परिवार भले टूट रहा हो, लेकिन तेजस्वी की पकड़ पहले से कहीं अधिक मजबूत हो चुकी है।
आगे क्या?
- राजद के भीतर संगठनात्मक बदलाव संभव
- परिवार की एकता पर बड़ा प्रश्नचिह्न
- तेजस्वी की नेतृत्व भूमिका और मजबूत
- बहनों और भाई तेज प्रताप की राजनीतिक सक्रियता पर असर
बिहार की राजनीति में यह विवाद आने वाले समय में बड़ा मोड़ ला सकता है।
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