भारत की सुरक्षा एजेंसियों और राजनीतिक हलकों में भूचाल तब आ गया जब पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (POK) के राष्ट्रपति चौधरी अनवरुल हक ने भारत में हुए दो बड़े आतंकी हमलों को लेकर सनसनीखेज स्वीकारोक्ति की। एक वायरल वीडियो में हक ने दावा किया कि लाल किले के पास हुआ धमाका और जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 लोगों की दर्दनाक हत्या, पाकिस्तान-समर्थित संगठनों द्वारा अंजाम दी गई “जवाबी कार्रवाई” थी। यह बयान पाकिस्तान की वर्षों पुरानी कथित आतंकवाद-निरोधी छवि को गहरे संकट में डाल देता है।

दिल्ली के लाल किले के पास 10 नवंबर को हुआ कार ब्लास्ट, जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी, भारत के लिए एक बड़ा सुरक्षा चुनौती बनकर सामने आया था। हालांकि भारतीय एजेंसियों को शुरुआत से ही बाहरी हाथ का संदेह था, मगर अब चौधरी अनवरुल हक के कबूलनामे ने इस हमले को सीधे पाकिस्तान से जोड़ दिया है। हक ने कहा कि इस हमले को अंजाम देने वाले पाक-समर्थित मॉड्यूल ने भारत को “सबक सिखाने” के मकसद से यह कार्रवाई की। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस धमाके का मास्टरमाइंड उमर उन नबी जैश-ए-मोहम्मद के ‘व्हाइट कॉलर नेटवर्क’ से जुड़ा था, जिसे फरीदाबाद से गिरफ्तार किया गया था।

इतना ही नहीं, हक ने पहलगाम के बैसारन वैली में हुए उस नरसंहार का भी जिक्र किया, जिसमें अप्रैल माह में 26 निर्दोष लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था। उन्होंने कहा कि यह हमला भी पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान में भारत की कथित गतिविधियों के जवाब में हुआ था। यह बयान पाकिस्तान की उस आधिकारिक लाइन को पूरी तरह खारिज कर देता है, जिसमें वह बार-बार भारत में आतंकवाद को समर्थन देने से इनकार करता रहा है।

यह स्वीकारोक्ति भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वर्षों से दिए जा रहे उस दावे को मजबूत करता है कि पाकिस्तान न केवल आतंकी संगठनों को संरक्षण देता है, बल्कि कई बार उन्हें राजनीतिक समर्थन भी प्रदान करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह बयान पाकिस्तान की स्थिति को कमजोर कर सकता है, खासकर FATF जैसे मंचों पर, जहाँ पाकिस्तान पहले से ही निगरानी सूची में रहा है।

भारत में राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी तेज रही हैं। सत्तारूढ़ दल ने इस बयान को “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” का खुला प्रमाण बताया, जबकि विपक्ष ने सरकार से माँग की है कि वह सुरक्षा ढांचे को और सुदृढ़ करे और पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने की रणनीति अपनाए।

सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हक का बयान सिर्फ अतीत का खुलासा नहीं, बल्कि भविष्य की चेतावनी भी है। उन्होंने ‘हम आगे भी करेंगे’ जैसी भाषा का प्रयोग कर यह संकेत दिया कि भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियाँ रोकी नहीं जाएँगी। इससे सुरक्षा एजेंसियों ने महानगरों, महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों और पर्यटक क्षेत्रों में चौकसी बढ़ा दी है।

पाकिस्तान के भीतर भी इस बयान से राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। विश्लेषकों का मानना है कि हक का यह कबूलनामा पाकिस्तान की विदेश नीति के विपरीत है और इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को भारी नुकसान होगा। यह भी स्पष्ट होता है कि POK के नेतृत्व और पाकिस्तान की सत्ता के बीच तालमेल की कमी है, या फिर कुछ तत्व खुलकर आतंकवाद को समर्थन देने की नीति अपना रहे हैं।

समग्र रूप से देखा जाए, तो यह बयान न सिर्फ भारत-पाकिस्तान संबंधों को और तनावपूर्ण बनाता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरता है। आने वाले दिनों में इस स्वीकारोक्ति का असर कूटनीति, सुरक्षा रणनीतियों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर गहरे रूप में देखने को मिलेगा।