छत्तीसगढ़ भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां की लोक संस्कृति, परंपराएं और पारंपरिक पहनावा इसकी विशिष्ट पहचान बनाते हैं। यहां की संस्कृति में आदिवासी जीवनशैली, लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक परिधान अहम भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ का हर क्षेत्र अपनी अलग लोक परंपराओं और परिधानों के लिए जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ का पारंपरिक पहनावा
महिलाओं का पारंपरिक वेशभूषा
छत्तीसगढ़ की महिलाएं पारंपरिक रूप से लुगड़ा पहनती हैं, जो नौ गज लंबी एक साड़ी होती है। इसे खास तरीके से पहना जाता है, जिससे यह पूरी तरह से शरीर को ढकती है और आरामदायक रहती है। इसके साथ महिलाएं चूड़ी, कड़ा, बिंदी, बिछिया और पैरों में चांदी की पायल पहनती हैं।
पुरुषों का पारंपरिक पहनावा
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में पुरुष आमतौर पर धोती और अंगोछा पहनते हैं। इसके अलावा, आधुनिक समय में कुर्ता-पायजामा या पेंट-शर्ट का चलन भी बढ़ा है। सिर पर गमछा या फेंटा पहनने की परंपरा भी है, जो गर्मी से बचाने के साथ-साथ एक विशिष्ट पहचान देता है।
यह भी पढ़ें: वनतारा पशु संरक्षण केंद्र: वन्यजीवों के संरक्षण की अनूठी पहल
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति
लोक नृत्य और संगीत
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में लोक नृत्य और संगीत का खास महत्व है। यहां कई प्रकार के पारंपरिक नृत्य प्रसिद्ध हैं:
- सुवा नृत्य: यह विशेष रूप से दीपावली के समय किया जाता है, जिसमें महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं।
- पंथी नृत्य: यह सतनाम पंथ के अनुयायियों का नृत्य है, जिसे विशेष अवसरों पर किया जाता है।
- कर्मा नृत्य: यह आदिवासी समुदायों द्वारा फसल कटाई के अवसर पर किया जाता है।
- राउत नाचा: यह यादव समाज द्वारा किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है, जिसमें पुरुष ढाल-तलवार के साथ प्रस्तुति देते हैं।
लोकगीत और पारंपरिक वाद्ययंत्र
छत्तीसगढ़ के लोकगीत इसकी संस्कृति को जीवंत बनाते हैं। यहाँ भजन, सोहर, फाग, विवाह गीत और बांस गीत विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। संगीत में मांदर, ढोलक, बांसुरी, खंजरी और हारमोनियम जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
त्योहार और उत्सव
छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहार इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं। यहां के लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ त्योहार मनाते हैं:
- गौरी-गौरा पूजा: यह त्योहार खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है।
- हरेली त्योहार: यह कृषि से जुड़ा त्योहार है, जिसे किसान अच्छी फसल के लिए मनाते हैं।
- मड़ई-मेला: यह आदिवासी समुदायों का प्रमुख मेला है, जिसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और खेलों का आयोजन होता है।
कला और हस्तशिल्प
छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला और हस्तशिल्प पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। यहां की प्रमुख कलाओं में ढोकरा कला (धातु शिल्प), बांस शिल्प, कुम्हारी कला, गोदना कला और लकड़ी पर नक्काशी शामिल हैं।
jai sir is a dedicated news blogger at The Hind Press, known for his sharp insights and fact-based reporting. With a passion for current affairs and investigative journalism, he covers national, international, sports, science, headlines, political developments, environment, and social issues with clarity and integrity.