देव पुरुष हरि गुजर की रियासत के पांचवें राजा होगें धर्मेंद्र सिंह

जांजगीर-चांपा। सक्ती के कुंवर जिवेंद्र सिंह के पुत्र महाराज लीलाधर के पोते महाराज सुरेन्द्र बहादुर सिंह महज 18 वर्ष की आयु में ही सक्ती रियासत की राजा बन राज-काज संभालने लगें थे। सक्ती रियासत का इतिहास स्वर्णिम रहा है।राज महल के मुख्य द्वार पर राजकीय स्याही से लिखा हरि गुजर महल राजकीय परिवार की गौरवशाली गाथा का साक्षी है। राजमहल के गौरवशाली इतिहास के पन्नों को पलटें तो सन् 1865 में 14 रियासतों का गठन किया गया था। जिसमें सक्ती रियासत छोटी रियासतों में शामिल थी। बस्तर उस समय की बड़ी रियासतों में जाना जाता था।

सक्ती रियासत के पहले राजा देवपुरुष हरि गुजर हुए। इनके पुत्र रूपनारायण सिंह ने सन् 1914 तक गद्दी संभाली। राज रुपनारायण की एकमात्र संतान उनकी पुत्री थी, जिनका ब्याह रायगढ़ के राजा नटवर सिंह के साथ हुआ। राजा रुपनारायण सिंह ने अपने छोटे भाई चित्रभान सिंह के बेटे लीलाधर सिंह को गोद ले सन् 1914 में उनका राज्याभिषेक किया। लीलाधर के पुत्र जिवेंन्द्र बहादुर सिंह का अल्प आयु में ही निधन होने से महाराज लिलाधर ने 1960 में महज 18 वर्ष की आयु में अपने पोते सुरेन्द्र बहादुर सिंह को राजतिलक कर सक्ती रियासत का राजा घोषित किया। राजमहल के स्वर्णिम इतिहास गौरवशाली परंपरा को कायम रखते हुए महराज सुरेन्द्र बहादुर सिंह अपने दत्तक पुत्र धर्मेंद्र सिंह का राजतिलक कर इस गौरवशाली रियासत के पांचवें राजा का उत्तरदायित्व सौंपने जा रहें हैं।

राजमहल से मिली जानकारी मुताबिक 19 अक्टूबर का दिन सक्ती रियासत के इतिहास में शामिल होने वाला दिन होगा, इस दिन महाराज सुरेन्द्र बहादुर सिंह राजकीय शानो शौकत से 19अक्टूबर दोपहर करीब 1 बजे राजपरिवार की कुल देवी ग्राम देवी शक्तिपीठ मां महामाया के मंदिर पहुंचकर विधी विधान से पूजा अर्चना कर मां को साक्षी मान अपने दत्तक पुत्र धर्मेंद्र सिंह का राज्याभिषेक कर उन्हें सक्ती रियासत के पांचवे राजा की गद्दी सौपेंगे।

कौन है कुंवर धर्मेद्र सिंह ?

कुंवर धर्मेंद्र सिंह का जन्म 1मई 1992 में हुआ। राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उन्हें अपना दत्तक पुत्र मानकर बड़े लाड़-प्यार से उनकी परवरिश की। धर्मेंद्र सिंह की स्कूली शिक्षा राजकुमार कॉलेज रायपुर से हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए ऑनर्स कर एलएलबी किया।